प्रॉपर्टी बेची और टैक्स चुकाया, फिर भी NRI को मिला ₹46 लाख का नोटिस! जानें पूरा मामला


प्रॉपर्टी बेची और टैक्स चुकाया, फिर भी NRI को मिला ₹46 लाख का नोटिस! जानें पूरा मामला
NRI property tax difficulty: अमेरिका में रहने वाले एक नॉन-रेजिडेंट इंडियन (NRI) को पुणे में अपनी संपत्ति बेचने के बाद टैक्स से जुड़ी भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। उन्हें इनकम टैक्स विभाग ने ₹46 लाख का भारी टैक्स-भरकम नोटिस जारी कर दिया। दिलचस्प बात है कि NRI ने टैक्स नियमों का पालन किया था, फिर भी उन्हें परेशानी हुई। दरअसल, इसकी वजह है खरीदार की तकनीकी गलती।क्या है टैक्स का पूरा मामलादिल्ली हाईकोर्ट के 27 मई 2025 के आदेश के मुताबिक, खरीदार ने बिक्री की रकम में से ₹18.68 लाख (20% TDS) काटकर टैक्स विभाग में जमा कर दिए। लेकिन उसने जो फॉर्म इस्तेमाल किया, वह गलत था। NRI विक्रेताओं के लिए निर्धारित फॉर्म 27Q इस्तेमाल करना होता है, लेकिन उसने फॉर्म 26QB यूज कर लिया। यह सिर्प निवासी विक्रेताओं के लिए होता है। इस वजह से जमा किया गया TDS विक्रेता के Annual Data Assertion (AIS) में दर्ज नहीं हुआ और वह इसे अपने ITR में क्रेडिट के रूप में नहीं दिखा सके।संबंधित खबरें26 लाख का इनकम टैक्स नोटिसखरीदार की गलती से अनजान NRI ने अपनी असली कैपिटल गेन टैक्स देनदारी ₹1.91 लाख आंकी और इसे अग्रिम कर (advance tax) के रूप में जमा कर दिया। लेकिन AIS में TDS क्रेडिट नहीं दिखने और उस वर्ष ITR फाइल नहीं करने की वजह से इनकम टैक्स विभाग ने उन्हें गैर-अनुपालक मान लिया। मार्च 2023 में विभाग ने सेक्शन 148(b) के तहत नोटिस जारी किया, जिसमें कहा गया कि उनकी आमदनी का मूल्यांकन नहीं हो पाया।NRI ने एडवांस टैक्स जमा करने और पूरी डील की जानकारी दी, लेकिन टैक्स विभाग ने उसे मानने से इनकार कर दिया। मार्च 2025 में टैक्स अधिकारी ने ₹46 लाख से अधिक टैक्स की मांग वाला आदेश जारी किया और सेक्शन 270A के तहत जुर्माना लगाने की प्रक्रिया शुरू कर दी।यहां तक कि जब खरीदार ने बैंक चालान दिखाकर TDS जमा होने की पुष्टि की, तब भी विभाग ने प्रक्रिया संबंधी बाधाओं का हवाला देकर कोई रियायत नहीं दी। उनकी Commonplace Working Process (SOP) के अनुसार, फॉर्म सुधारने के लिए खरीदार की लिखित सहमति, एक इंडेम्निटी बॉन्ड, और अन्य दस्तावेजों की जरूरत थी। वहीं बैंक भी खरीदार की रिक्वेस्ट को सही फॉर्म में बदलने में देर कर रहा था।दिल्ली हाईकोर्ट ने NRI को दी राहतइससे परेशान होकर NRI ने दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। अदालत में इनकम टैक्स विभाग ने माना कि टैक्स जमा हुआ था, लेकिन यह भी कहा कि प्रक्रिया के तहत बिना खरीदार की सहमति के रिकॉर्ड सुधार नहीं हो सकता।हाईकोर्ट ने पूछा कि जब TDS कटौती और उसका भुगतान विवादित नहीं है, तो फिर खरीदार की सहमति क्यों जरूरी है? विभाग ने दलील दी कि ऐसा करना भविष्य में खरीदार द्वारा TDS की रिफंड क्लेम से बचने के लिए जरूरी है।लेकिन कोर्ट ने NRI के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा, “इस विशेष मामले में हम राजस्व विभाग को निर्देश देते हैं कि वे रिकॉर्ड में सुधार करें और फॉर्म 26QB के तहत जमा TDS को विक्रेता (याचिकाकर्ता) के क्रेडिट में दर्शाएं, उस तारीख से जब वह जमा किया गया था।”कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि इनकम टैक्स विभाग कोई रिफंड बनता हो तो वह जारी करे और पुराने सभी विरोधाभासी आदेशों और पत्राचार को निरस्त माने।TDS विवाद की टाइमलाइन 1998: NRI ने पुणे में संपत्ति खरीदी। मार्च 2015: खरीदार ने ₹2 करोड़ में प्रॉपर्टी खरीदने का समझौता किया। सितंबर 2015: खरीदार ने ₹18.68 लाख TDS काटा और बाकी रकम NRI को दी। अक्टूबर 2015: NRI ने ₹1.91 लाख टैक्स का आकलन कर अग्रिम कर जमा किया। लेकिन ITR फाइल नहीं किया। मार्च 2023: इनकम टैक्स विभाग ने सेक्शन 148 के तहत नोटिस जारी किया। मार्च 2025: विभाग ने ₹46.8 लाख टैक्स डिमांड का आदेश जारी किया, जबकि NRI ने सबूत दिए थे। AIS में केवल ₹1.91 लाख अग्रिम कर की एंट्री दिख रही थी, खरीदार द्वारा जमा किया गया TDS नहीं। NRI प्रॉपर्टी बेचते वक्त इन बातों का रखें ख्याल खरीदार से Type 27Q के जरिए ही 20% TDS जमा कराएं। Type 26QB सिर्फ रेजिडेंट विक्रेताओं के लिए होता है। गलत फॉर्म भारी मुसीबत बन सकता है। टैक्स कटौती के बाद, उसका challan quantity और डिटेल्स जरूर लें और यह सुनिश्चित करें कि वह आपकी AIS (Annual Data Assertion) में सही तरीके से दिख रहा है। अगर आप भारत में टैक्स दे रहे हैं, तो संबंधित वित्त वर्ष की इनकम टैक्स रिटर्न समय पर फाइल करें। ऐसा न करना आयकर विभाग की नजर में ‘non-compliance’ बन सकता है। TDS कटौती की रसीद, बैंक स्टेटमेंट, बिक्री एग्रीमेंट, एडवांस टैक्स भुगतान की रसीद- ये सब कोर्ट या विभाग को समझाने में आपकी ढाल बनते हैं। अगर कोई तकनीकी या प्रक्रियात्मक गड़बड़ी हो जाए, तो विवाद बढ़ने से पहले कोर्ट या टैक्स प्रोफेशनल की मदद लें। सही वक्त पर कार्रवाई आपकी करोड़ों की टैक्स देनदारी बचा सकती है। यह भी पढ़ें: SIP vs House Mortgage: घर खरीदें या SIP में लगाएं पैसा? कौन-सा विकल्प है बेहतर

Supply hyperlink

Leave a Comment