Private Knowledge Safety: भारत में अब आपकी पहचान सिर्फ वॉलेट या कार्ड तक सीमित नहीं है। वह सर्वर, ऐप्स, टेलीकॉम नेटवर्क्स और सरकारी डैशबोर्ड्स पर फैली हुई है। मोबाइल नंबर, आधार और पैन कार्ड अब आपके डिजिटल जीवन के तीन सबसे अहम स्तंभ बन चुके हैं। चाहे आप नया SIM कार्ड लें, बैंक खाता खोलें, या ऑनलाइन केवाईसी करें, हर कदम पर यही पहचान इस्तेमाल होती है।लेकिन जितनी आसानी यह लाती है, उतने ही खामोश खतरे भी। हर बार जब आप OTP डालते हैं या e-KYC की अनुमति देते हैं, आपका डेटा कई परतों से गुजरता है। कुछ सुरक्षित, कुछ नहीं। और सच तो ये है कि ज्यादातर लोगों को पता भी नहीं होता कि उनकी जानकारी कहां जा रही है, कैसे इस्तेमाल हो रही है, या कौन इसका फायदा उठा रहा है।Aadhaar और मोबाइल नंबर: पहचान या मजबूरी?संबंधित खबरेंआधिकारिक रूप से आधार का इस्तेमाल निजी सेवाओं के लिए अनिवार्य नहीं है। जैसे कि SIM कार्ड या बैंक अकाउंट। 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने भी आधार को मोबाइल कनेक्शन के लिए जरूरी ठहराना असंवैधानिक बताया था। इसके बावजूद आज भी कई टेलीकॉम कंपनियां और ऐप्स यूजर्स को आधार लिंकिंग के लिए मजबूर करती हैं। या तो ‘आप आगे नहीं बढ़ सकते’ जैसे पॉपअप के जरिए, या सहमति के नाम पर दबाव डालकर।PAN डेटा का गुपचुप इस्तेमालPAN कार्ड जो कभी सिर्फ टैक्स और वित्तीय उद्देश्यों के लिए था, अब डिजिटल पहचान का ऑल-इन-वन टूल बन चुका है। कई फिनटेक और एग्रीगेटर प्लेटफॉर्म्स PAN डेटा के जरिए यूजर का पूरा प्रोफाइल निकाल लेते हैं- पता, मोबाइल नंबर, ट्रांजैक्शन हिस्ट्री तक। वो भी बिना यूजर की स्पष्ट सहमति के।2024 में कुछ मीडिया रिपोर्ट्स सामने आने के बाद सरकार ने इसे स्वीकारा और बेहतर एक्सेस कंट्रोल का वादा किया। लेकिन अब भी कई स्टार्टअप थर्ड पार्टी API के जरिए PAN डेटा एक्सेस कर रहे हैं, और यूजर्स को इसका अंदाजा भी नहीं होता।DPDP Act: क्या बदलेगा, क्या नहीं 2023 में लागू Digital Private Knowledge Safety Act (DPDP) इस असंतुलन को ठीक करने की कोशिश करता है। इसके तहत कुछ खास प्रावधान हैं: किसी भी पर्सनल डेटा के इस्तेमाल से पहले सटीक, समयबद्ध और स्पष्ट सहमति लेनी होगी। यूजर चाहें तो अपना डेटा डिलीट करवाने, उसमें सुधार कराने या सहमति वापस लेने की मांग कर सकते हैं। कंपनियों को यह भी बताना होगा कि डेटा क्यों लिया जा रहा है, कहां स्टोर होगा, और कितने समय तक रखा जाएगा। अगर कानून का उल्लंघन हुआ तो ₹250 करोड़ तक का जुर्माना लग सकता है। DPDP Act में खामियां भी हैंबेशक यह कानून यूजर्स को अपने डेटा पर नियंत्रण के अधिकार देता है। लेकिन, यह कानून भी पूरी तरह परफेक्ट नहीं है। इसमें भी कई लूपहोल या फिर खामियां हैं। ‘राष्ट्रीय हित’ जैसे शब्दों के जरिए सरकार को कई छूट मिली है, जो काफी व्यापक और अस्पष्ट हैं। यूजर्स अक्सर लंबी शर्तें बिना पढ़े ही ‘I agree’ क्लिक कर देते हैं। यह consent fatigue का क्लासिक उदाहरण है। आधार कानून (Aadhaar Act, 2016) अभी भी DPDP से मेल नहीं खाता, जिससे डेटा सुरक्षा में अंतर रह जाता है। आपको चिंता क्यों करनी चाहिए? आधार-पैन-मोबाइल लिंक के जरिए आपकी प्रोफाइलिंग बिना आपकी जानकारी के की जा सकती है। लोन और इंश्योरेंस वाले स्पैम कॉल्स असल में आपके डेटा के बेधड़क इस्तेमाल का संकेत हैं। आधार लीक हो चुके हैं, यहां तक कि बायोमेट्रिक डेटा भी सरकारी पोर्टल्स से एक्सपोज हुआ। पैन का इस्तेमाल कर फर्जी क्रेडिट रिपोर्ट, पहचान की चोरी और टारगेटेड विज्ञापन किए जाते हैं। आपकी प्राइवेसी के विकल्प घट रहे हैं, जबकि डेटा इकोनॉमी आपकी पहचान पर मुनाफा कमा रही है। क्या कर सकते हैं आप? Digital ID (VID) का इस्तेमाल करें, ताकि असली आधार नंबर साझा न करना पड़े। जिन सेवाओं की प्राइवेसी पॉलिसी अस्पष्ट हो, वहां जानकारी साझा करने से बचें। सिर्फ RBI-लाइसेंस प्राप्त या SEBI-रेगुलेटेड संस्थानों को ही PAN दें। DPDP के तहत पूछें: आपका डेटा क्यों लिया गया, कितना रखा गया है, और कितने समय तक रहेगा। डेटा प्रोटेक्शन बोर्ड के शुरू होने पर, किसी भी उल्लंघन की रिपोर्ट जरूर करें। Aadhaar–PAN–cell इकोसिस्टम सहूलियत के लिए बनाया गया था, लेकिन आज यह डेटा ब्रोकरों, अनरेगुलेटेड ऐप्स और निजी कंपनियों के लिए सोने की खान बन गया है। DPDP कानून ने एक जरूरी शुरुआत की है, लेकिन असली असर तब होगा जब यूजर्स जागरूक हों, कंपनियां जिम्मेदारी से व्यवहार करें और सरकार ठोस अमल करे।जब तक ऐसा नहीं होता, अपने डिजिटल अस्तित्व की रक्षा का जिम्मा खुद उठाना होगा। क्योंकि आपकी पहचान अब सिर्फ आपका नाम नहीं, बल्कि आपका डेटा बन चुका है।यह भी पढ़ें : SIM Swap Rip-off: क्या है SIM स्वैप स्कैम, जिससे सरकार ने किया सजग? जानिए बचने का आसान तरीका
