Restaurant Invoice GST: रेस्टोरेंट में खाने के बिल पर कैसे लगता है GST? समझिए पूरा कैलकुलेशन


Restaurant Invoice GST: रेस्टोरेंट में खाने के बिल पर कैसे लगता है GST? समझिए पूरा कैलकुलेशन
GST on restaurant payments: रेस्टोरेंट में आप जब भी खाना ऑर्डर करते हैं, तो बिल में गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स(GST) की भूमिका काफी अहम हो जाती है। आप चाहे रेस्टोरेंट में बैठकर खा रहे हों, टेकअवे ले रहे हों या ऑनलाइन फूड मंगवा रहे हों, इस बात को समझना जरूरी है कि रेस्टोरेंट बिल पर GST कैसे लागू होता है।यह न सिर्फ ग्राहकों, बल्कि रेस्टोरेंट मालिकों के लिए भी जरूरी है, क्योंकि इससे बिलिंग, कीमत और ऑपरेशनल फैसलों पर सीधा असर पड़ता है। आइए रेस्टोरेंट बिल पर GST कैलकुलेशन को बारीकी से समझते हैं।रेस्टोरेंट बिल पर GST क्या है?संबंधित खबरेंसरकार रेस्टोरेंट्स पर GST उनके प्रकार और स्ट्रक्चर के आधार पर लगाती है। मौजूदा समय में तीन प्रमुख स्लैब लागू होते हैं: 5% GST: उन रेस्टोरेंट्स पर जो इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) का दावा नहीं करते। इसमें ज्यादातर स्टैंडअलोन रेस्टोरेंट आते हैं, चाहे वो डाइन-इन हों, टेकअवे या डिलीवरी। 12% GST: उन रेस्टोरेंट्स पर जो ऐसे होटलों में हैं, जिनके कमरे का किराया ₹7,500 से अधिक है और वे ITC का क्लेम करते हैं। 18% GST: आउटडोर कैटरिंग सर्विसेज पर, अगर वे ITC का लाभ लेती हैं। GST ने पहले के टैक्स सिस्टम (जैसे सर्विस टैक्स और VAT) की जगह एक कंसोलिडेटेड टैक्स सिस्टम दिया है।क्या सही से लगता है GST?कानून के अनुसार, GST की दरें डाइन-इन, टेकअवे और डिलीवरी—सभी पर एक समान लागू होती हैं। लेकिन व्यवहार में सर्विस के तरीके के आधार पर टैक्स कौन वसूलता है, इसमें बदलाव आ सकता है। खासकर, जब बात फूड एग्रीगेटर प्लेटफॉर्म्स की हो।करी क्राउन रेस्टोरेंट चेन के को-फाउंडर परस तेवतिया कहते हैं, “हम 5% GST की तय स्ट्रक्चर को फॉलो करते हैं। डाइन-इन, टेकअवे और डिलीवरी सभी पर। बिलिंग में पूरी पारदर्शिता रखते हैं, ताकि ग्राहकों का भरोसा बना रहे।”जो रेस्टोरेंट्स कंपोजीशन स्कीम के तहत रजिस्टर्ड हैं और जिनका सालाना टर्नओवर ₹1.5 करोड़ तक है, वे 5% की तय दर पर टैक्स देते हैं। लेकिन, वे बिल पर GST चार्ज नहीं कर सकते और न ही ITC का फायदा ले सकते हैं।GST का खाने के बिल पर असरज्यादातर रेस्टोरेंट्स के लिए GST सिर्फ एक कानूनी दायित्व नहीं है। यह सीधे तौर पर मेन्यू की प्राइसिंग और ग्राहक के बिल पर असर डालता है।तेवतिया कहते हैं, “हमारी प्राइसिंग स्ट्रैटेजी में GST की भूमिका जरूर होती है, लेकिन हम मेन्यू को संतुलित और सुलभ रखने की कोशिश करते हैं। टैक्स का कुछ बोझ हम खुद उठाते हैं, ताकि ग्राहकों को वैल्यू मिले।”वहीं, कुछ रेस्टोरेंट्स इस बात को चुनौती मानते हैं कि उन्हें ITC का फायदा नहीं मिलता। तेवतिया के मुताबिक, “अगर इनपुट टैक्स क्रेडिट वापस लाया जाए, तो रेस्टोरेंट्स बेहतर सामग्री, इंफ्रास्ट्रक्चर और सेवा में निवेश कर सकते हैं।”जोमैटो-स्विगी के ऑर्डर पर क्या होता है?जब खाना जोमैटो या स्विगी जैसे एग्रीगेटर प्लेटफॉर्म्स से ऑर्डर किया जाता है, तो GST वसूलने की जिम्मेदारी बदल जाती है।प्रीमियम डाइनिंग ब्रांड कारीगरी (Karigari) के फाउंडर और CEO योगेश शर्मा बताते हैं, “ऐसे मामलों में GST की वसूली और भुगतान सीधे प्लेटफॉर्म ही करते हैं। ग्राहक को बिल में GST ब्रेकअप जरूर दिखता है, लेकिन सरकार को टैक्स संबंधित प्लेटफॉर्म जमा कराता है।”यह भी पढ़ें : SIP Tax Guidelines: म्यूचुअल फंड से मुनाफे पर कितना और कैसे लगता है टैक्स, समझिए पूरा कैलकुलेशन

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