New Tax Regime: सैलरीड टैक्सपेयर्स के लिए क्यों बेहतर है नई टैक्स रीजीम, जानें पूरी डिटेल


New Tax Regime: सैलरीड टैक्सपेयर्स के लिए क्यों बेहतर है नई टैक्स रीजीम, जानें पूरी डिटेल
New Tax Regime: न्यू टैक्स रीजीम को अपनाने वाले टैक्सपेयर्स की तादाद तेजी से बढ़ी है। इसमें बड़ी संख्या सैलरीड क्लास की है। वेतनभोगी लोगों के लिए नई टैक्स व्यवस्था को अपनाने के कई फायदे हैं, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण है कम टैक्स दरें। वित्त वर्ष 2024-25 के लिए नई टैक्स व्यवस्था में ₹15 लाख से अधिक सालाना कमाई के लिए अधिकतम टैक्स दर 30 प्रतिशत तय की गई है। ₹12 लाख से ₹15 लाख के बीच आय वालों पर 20 प्रतिशत और ₹10 लाख से ₹12 लाख के बीच वालों पर 15 प्रतिशत टैक्स दर लागू होगी।वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 23 जुलाई 2024 को इन बदलावों की घोषणा करते हुए कहा था कि वेतनभोगी कर्मचारी नई टैक्स व्यवस्था के तहत अधिकतम ₹17,500 तक टैक्स बचा सकते हैं। इसके उलट पुरानी टैक्स व्यवस्था में ₹10 लाख से ऊपर की आय पर ही 30 प्रतिशत टैक्स लागू हो जाता है।सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेज (CBDT) के चेयरमैन ने हाल ही कहा था कि अभी तक लगभग 73 प्रतिशत करदाता नई टैक्स व्यवस्था को अपना चुके हैं और अगले वर्ष तक इसके 90 प्रतिशत तक पहुंचने की संभावना है।संबंधित खबरेंस्टैंडर्ड डिडक्शन में बढ़ोतरीवेतनभोगी कर्मचारियों के लिए स्टैंडर्ड डिडक्शन को पिछले साल ₹50,000 से बढ़ाकर ₹75,000 कर दिया गया था। वहीं, पुरानी टैक्स व्यवस्था में यह छूट ₹50,000 ही बनी हुई है।नई टैक्स व्यवस्था में डिडक्शनहालांकि नई टैक्स व्यवस्था में पारंपरिक डिडक्शन जैसे धारा 80C, 80D, 80DD और 80G के तहत छूट उपलब्ध नहीं है, फिर भी कुछ महत्वपूर्ण डिडक्शन लागू हैं। धारा 80CCD(2) के तहत नियोक्ताओं द्वारा NPS में योगदान पर डिडक्शन की सीमा बढ़ाकर 14 प्रतिशत कर दी गई है। धारा 80CCH के तहत अग्निवीर कॉर्पस फंड में योगदान पर छूट प्रदान की जाती है। धारा 80JJAA के तहत अतिरिक्त कर्मचारियों की भर्ती करने वाले नियोक्ताओं को तीन वर्षों तक 30 प्रतिशत डिडक्शन मिलता है। इस बात का टैक्सपेयर्स रखें ध्याननई टैक्स रीजीम को चुनते वक्त यह ध्यान रखना जरूरी है कि नई टैक्स व्यवस्था में धारा 80C, 80D, 80DD और 80G के तहत मिलने वाली पारंपरिक डिडक्शन की अनुमति नहीं है। वहीं, जो करदाता अपनी आयकर रिटर्न पुराने टैक्स रीजीम के तहत भरते हैं, वे इन डिडक्शनों का दावा कर सकते हैं। आपको इस नफा-नुकसान का आकलन करके ही टैक्स रीजीम चुनना चाहिए।इनकम टैक्स कैलकुलेटर की मदद लेंअगर आप टैक्स बचत के लिए निवेश में कुछ रकम लगाते हैं और तय नहीं कर पा रहे कि कौन-सी टैक्स व्यवस्था आपके लिए फायदेमंद होगी, तो इनकम टैक्स कैलकुलेटर का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसमें अपनी आय और निवेश से जुड़ी जानकारियां दर्ज कर आप दोनों व्यवस्थाओं के तहत टैक्स की गणना कर सकते हैं। अगर पुरानी टैक्स व्यवस्था के तहत टैक्स कम बैठता है, तो आप उसे चुन सकते हैं, अन्यथा नई टैक्स व्यवस्था आपके लिए बेहतर रहेगी।यह भी पढ़ें : Earnings Tax के इन 5 नियमों को समझ लीजिए, कम हो जाएगी आपकी टैक्स देनदारी

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