Gold vs Actual Property: घर खरीदें या सोना, किसमें पैसा लगाने पर होगा ज्यादा फायदा?


Gold vs Actual Property: घर खरीदें या सोना, किसमें पैसा लगाने पर होगा ज्यादा फायदा?
Gold vs Actual Property: भारत में निवेश का नाम आते ही दो विकल्प सबसे पहले सामने आते हैं- गोल्ड और रियल एस्टेट। ये केवल आर्थिक निर्णय नहीं होते, बल्कि सांस्कृतिक और भावनात्मक जुड़ाव से भी जुड़े होते हैं। इन दोनों ने दशकों तक भरोसेमंद रिटर्न दिए, लेकिन अब निवेश की दुनिया बदल रही है- डिजिटल एसेट्स, आसान लिक्विड इन्वेस्टमेंट ऑप्शंस और नई पीढ़ी की प्राथमिकताएं पारंपरिक विकल्पों को चुनौती दे रही हैं।ऐसे में जरूरी हो गया है कि हम इन दोनों एसेट क्लास को नए नजरिए से परखें कि क्या आज के समय में गोल्ड वाकई ‘सबसे सुरक्षित निवेश’ है? और क्या प्रॉपर्टी में निवेश अब भी उतना ही फायदे का सौदा है जितना कभी था? साथ ही, इन दोनों में से किसमें निवेश करना अब सही होगा?सोने में निवेश करने के फायदे?संबंधित खबरेंगोल्ड लंबे समय से महंगाई और करेंसी उतार-चढ़ाव से बचाव का जरिया रहा है। यही वजह है कि इसे सबसे सुरक्षित निवेश माना जाता है। पिछले कुछ महीनों में जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ वॉर और भूराजनीतिक तनाव के चलते अनिश्चितता बढ़ी, तो निवेशकों ने गोल्ड का रुख किया। उस दौरान भारत में पहली बार सोने की कीमत ₹1 लाख प्रति 10 ग्राम पहुंच गई। अगर 2010-11 से 2020-21 के बीच के दशक की बात करें, तो वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के मुताबिक- सोने ने औसतन 8.0% से 8.5% सालाना रिटर्न दिया है।सबसे बड़ी बात कि भारत में सोने की सामाजिक और सांस्कृतिक अहमियत भी है। इससे लोगों का भावनात्मक जुड़ाव भी रहता है। वहीं, डिजिटल गोल्ड, गोल्ड ETF और सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड जैसे विकल्पों ने इसे आम निवेशक तक और सुलभ बना दिया है।विशेषज्ञों के अनुसार, अगर किसी निवेशक की प्राथमिकता लिक्विडिटी और डायवर्सिफिकेशन है, तो गोल्ड एक सुरक्षित विकल्प हो सकता है। यह आर्थिक अनिश्चितता में भी अपनी कीमत बनाए रखता है। अगर आप बतौर निवेशक लॉन्ग टर्म ग्रोथ चाहते हैं, तो सोने को पोर्टफोलियो में सिर्फ एक सपोर्टिंग एसेट के तौर पर रखना चाहिए।गोल्ड में निवेश पर क्या जोखिम हैं? गोल्ड से कोई पैसिव इनकम नहीं मिलती। ऐसे में इसे इन्वेस्टमेंट पोर्टफोलियो का आधार बनाने से बचना चाहिए। इसे बस सपोर्ट के तौर पर रखना चाहिए। कई बार ऐसा देख गया है, जब गोल्ड ने सालोंसाल जीरो या फिर नेगेटिव रिटर्न दिया। निवेशकों को ऐसे हालत के लिए तैयार रहना चाहिए। भले ही हाल के वर्षों में गोल्ड ने अच्छा प्रदर्शन किया हो, लेकिन लंबी अवधि में इसका CAGR रियल एस्टेट या इक्विटी की तुलना में अक्सर कम रहा है। भारतीय परिवार अक्सर इमोशन के चलते पोर्टफोलियो का बड़ा हिस्सा गोल्ड में डाल देते हैं, जिससे डाइवर्सिफिकेशन घट जाता है और लॉन्ग टर्म ग्रोथ बाधित होती है। गोल्ड की कीमतें इंटरनेशनल मार्केट, डॉलर रेट, जियोपॉलिटिकल टेंशन और सेंट्रल बैंक की खरीद-बिक्री जैसे कारकों से प्रभावित होती हैं। इसलिए इसमें अचानक गिरावट की संभावना रहती है। रियल एस्टेट में निवेश के फायदे?रियल एस्टेट, खासकर आवासीय संपत्ति, को भारतीय परिवारों में स्थिरता और सामाजिक स्थिति का प्रतीक माना जाता है। RBI का Home Value Index (HPI) डेटा बताता है कि वित्त वर्ष 2010-11 से वित्त वर्ष 2020-21 के दरम्यान घरों की कीमत औसतन 10% सालाना की दर से बढ़ी है।अगर वित्तीय नजरिए की बात करें, तो आवासीय संपत्ति न केवल लंबी अवधि में मूल्य वृद्धि देता है, बल्कि होम लोन पर टैक्स बेनिफिट (धारा 80C और 24(b)) और किराये की आय जैसी व्यावहारिक सुविधाएं भी देता है।भारत का रेजिडेंशियल प्रॉपर्टी मार्केट फिलहाल स्थिरता और ग्रोथ के संकेत दे रहा है। आकर्षक ब्याज दरें, त्योहारी छूट और बढ़ती हाउसिंग डिमांड ने इसे मजबूत बनाए रखा है। एक्सपर्ट का मानना है कि अगर किसी की आय स्थिर है और निवेश की समयसीमा मध्यम से दीर्घकालिक है, तो शहरी क्षेत्रों में प्रॉपर्टी निवेश वेल्थ क्रिएशन के लिए एक बेहतर विकल्प हो सकता है।रियल एस्टेट में निवेश पर क्या जोखिम हैं? रियल एस्टेट ‘लिक्विडिटी’ की समस्या हो सकती है। इसे जरूरत पड़ने पर तुरंत बेचना मुश्किल होता है और सही कीमत मिलने में भी समय लग सकता है। प्रॉपर्टी खरीदते या बेचते वक्त स्टांप ड्यूटी, रजिस्ट्रेशन फीस, एजेंट कमीशन, और टैक्स जैसी लागतें कुल निवेश का 7–12% तक हो सकती हैं, जिससे रिटर्न कम हो सकता है। किरायेदार संभालना, बिल भरना, रिपेयर करवाना और सोसाइटी से तालमेल जैसी जिम्मेदारियां लगातार वक्त और एनर्जी मांगती हैं, खासकर रेसिडेंशियल प्रॉपर्टी में। लोकेशन, डेवलपर डिफॉल्ट, अथॉरिटी अप्रूवल्स या सरकार की नीतियों में बदलाव जैसे कई फैक्टर्स प्रॉपर्टी के वैल्यू को प्रभावित करते हैं। गलत प्रोजेक्ट चुनना भारी नुकसान दे सकता है। किराये पर निर्भर करना जोखिम भरा हो सकता है। खाली प्रॉपर्टी या भुगतान न करने वाले किरायेदारों के चलते अपेक्षित इनकम नहीं मिलती। कई शहरों में रेंटल यील्ड 2–3% तक ही सीमित रहती है। गोल्ड या रियल एस्टेट, कहां लगाएं पैसा?यह काफी हद आपकी पूंजी और फाइनेंशियल गोल्स पर निर्भर करता है। एक्सपर्ट का मानना है कि गोल्ड और रियल एस्टेट दोनों ही निवेश के मजबूत विकल्प हैं, लेकिन इनकी भूमिका अलग-अलग है। गोल्ड आर्थिक अनिश्चितता के समय में सुरक्षित निवेश (secure haven) माना जाता है। यह लिक्विड होता है, यानी आप जरूरत पड़ने पर तुरंत बेच सकते हैं। साथ ही, सोना मुद्रास्फीति (Inflation) से सुरक्षा भी देता है। लेकिन इसमें न तो किराया मिलता है और न ही कोई रेगुलर इनकम। इसलिए गोल्ड को पोर्टफोलियो में डाइवर्सिफिकेशन और इमरजेंसी फंड के तौर पर रखना समझदारी होती है।वहीं, रियल एस्टेट एक लॉन्ग-टर्म एसेट है जो न केवल पूंजी में बढ़ोतरी (capital appreciation) देता है, बल्कि किराये से रेगुलर इनकम भी जेनरेट कर सकता है। टैक्स बेनिफिट्स और संपत्ति के मालिकाना हक जैसी सुविधाएं इसे एक स्थायी निवेश बनाती हैं। हालांकि, इसमें लिक्विडिटी की कमी, मेंटेनेंस और लीगल पेचिदगियां शामिल होती हैं। इसलिए जिनकी इनकम स्थिर है और नजरिया लंबी अवधि का है, उनके लिए रियल एस्टेट बेहतर हो सकता है।एक्सपर्ट के मुताबिक, अगर आपके निवेश का नजरिया शॉर्ट से मीडियम टर्म का है और आपको लिक्विडिटी चाहिए, तो आपको गोल्ड का रुख करना चाहिए। वहीं, लॉन्ग टर्म ग्रोथ का स्थायी नजरिया रखने वालों के लिए प्रॉपर्टी बेहतर विकल्प हो सकती है। लेकिन, किसी भी एसेट में निवेश से पहले आप आपको अपनी वित्तीय स्थिति, जोखिम सहने की क्षमता और लक्ष्य पर गौर कर लेना चाहिए।यह भी पढ़ें : SIP Technique: शेयर बाजार में लौटी बहार… अब SIP में कैसे लगाएं पैसा, जानिए एक्सपर्ट से

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