Financial institution Fraud: 47 चेक पर जाली सिग्नेचर कर बैंक ऑफ बड़ौदा से निकाले पैसे! लापरवाही BOB को पड़ी भारी, ग्राहक को 6% इंटरेस्ट के साथ देना होगा पैसा


Financial institution Fraud: 47 चेक पर जाली सिग्नेचर कर बैंक ऑफ बड़ौदा से निकाले पैसे! लापरवाही BOB को पड़ी भारी, ग्राहक को 6% इंटरेस्ट के साथ देना होगा पैसा
अगर आपने कभी बैंक में चेक जमा किया हो और आपके मन में यह डर रहा हो कि कहीं कोई जाली सिग्नेचर वाला चेक आपके खाते से पैसे न निकाल ले? तो अब राहत की खबर है। केरल हाई कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में साफ कर दिया है कि अगर बैंक जाली सिग्नेचर वाला चेक क्लियर करता है, तो उसकी पूरी जिम्मेदारी बैंक की होगी। कोर्ट ने यह भी कहा है कि ग्राहक की थोड़ी-बहुत लापरवाही भी बैंक की गलती को नहीं ढक सकती। केरल हाई कोर्ट ने हाल ही में एक बड़े बैंक धोखाधड़ी मामले में ग्राहकों के हक में अहम फैसला सुनाया है। यह पूरा मामला 47 चेक से जुड़ा है जिन पर जाली सिग्नेचर करके पैसे निकाले गए थे। इसमें से 32 चेक थर्ड पार्टी को दिए गए, जिससे पैसे वापस मिलना मुश्किल हो गया, जबकि 15 अकाउंट-पेयी चेक थे, इसलिए उनका पैसा वापस लाया जा सका।इस धोखाधड़ी की सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि तीन महीने तक न तो बैंक और न ही ग्राहक इसे पकड़ पाए। जब तक सच्चाई सामने आई, तब तक कई ग्राहक लाखों रुपये गंवा चुके थे और उन्हें कोर्ट में शिकायत दर्ज करनी पड़ी।बैंक ने पहले अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ते हुए कहा कि चेक प्रोसेस करते समय सभी जरूरी प्रक्रिया पूरी की गई थी। लेकिन केरल हाई कोर्ट ने बैंक की यह दलील खारिज कर दी और आदेश दिया कि सभी प्रभावित ग्राहकों को उनकी पूरी रकम 6% सालाना ब्याज के साथ लौटाया जाए। यह मामला पहले विजया बैंक से जुड़ा था लेकिन उसके बाद बैंक ऑफ बड़ौदा से जुड़ गया, क्योंकि विजया बैंक का मर्जर बैंक ऑफ बड़ौदा में हो गया था।संबंधित खबरेंग्राहकों ने इस धोखाधड़ी की जांच रिपोर्ट आरटीआई के जरिए हासिल की थी। इस रिपोर्ट में साफ बताया गया कि जिन चेक पर सिग्नेचर किए गए थे, वे बैंक में रखे गए सैंपल सिग्नेचर से मेल नहीं खाते थे। कुछ मामलों में तो सैंपल सिग्नेचर बैंक में मौजूद ही नहीं थे। बैंक ने इस रिपोर्ट को भी खारिज करने की कोशिश की और कहा कि रिपोर्ट बनाने वाले अधिकारी ने सही प्रोसेस का पालन नहीं किया। लेकिन कोर्ट ने यह दलील भी मानने से इनकार कर दिया।बैंक ने यह भी कहा कि सिग्नेचर की जालसाजी हो सकता है ग्राहक के किसी जानकार व्यक्ति ने की होगी, इसलिए बैंक को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। लेकिन कोर्ट ने यह तर्क भी खारिज कर दिया। केरल हाई कोर्ट ने अपने फैसले में तीन मुख्य सवालों पर विचार किया।धोखाधड़ी और चेक की लापरवाही से एनकैशमेंट की जिम्मेदारी किस पर है?क्या जिसने यह जिम्मेदारी ली है, उसने इसे साबित किया?क्या निचली अदालत का यह फैसला सही था कि ग्राहक अपने केस को सही से साबित नहीं कर पाए?कोर्ट ने कही ये बातइन तीनों सवालों पर कोर्ट ने पाया कि बैंक की ओर से लापरवाही हुई है। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने फैसले का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि अगर चेक पर सिग्नेचर जाली है, तो बैंक के पास उसे एनकैश करने का कोई अधिकार नहीं है। यह बैंक की जिम्मेदारी है कि वह सिग्नेचर की जांच करे और अगर वह इस प्रक्रिया में चूकता है, तो उसे ग्राहक को नुकसान की भरपाई करनी होगी।कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि कोई भी चेक जिस पर फर्जी सिग्नेचर हो, वैलिड नहीं माना जा सकता और अगर बैंक ऐसा चेक क्लियर करता है, तो यह उसकी गलती मानी जाएगी। ग्राहक की लापरवाही जैसे चेकबुक को ठीक से न रखना, बैंक के लिए बचाव का आधार नहीं बन सकता।इस केस में बैंक यह भी साबित नहीं कर पाया कि जिन रिपोर्टों में सिग्नेचर को फर्जी बताया गया था, वे गलत थीं। इसलिए कोर्ट ने ये रिपोर्टें सही मानीं और कहा कि बैंक को इनकी सच्चाई को चुनौती देनी थी, लेकिन उसने ऐसा कोई ठोस प्रयास नहीं किया।इस फैसले का असर बहुत बड़ा हो सकता है। अब बैंक को चेक क्लियर करने से पहले सिग्नेचर की वैरिफिकेशन में और सतर्क रहना होगा। ग्राहक भी यह जानकर राहत महसूस करेंगे कि अगर कभी उनके खाते से जाली सिग्नेचर के ज़रिए पैसे निकाले गए, तो वे बैंक के खिलाफ कार्रवाई कर सकते हैं।यह फैसला यह भी बताता है कि अगर ग्राहक चेक पर फर्जी सिग्नेचर की बात को साबित कर देता है, तो फिर बैंक पर यह जिम्मेदारी आ जाती है कि वह खुद को सही साबित करे। अगर वह ऐसा नहीं कर पाता, तो उसे पैसा लौटाना ही पड़ेगा। इस फैसले के बाद बैंकों पर यह दबाव रहेगा कि वे अपने इंटरनल चेकिंग सिस्टम को और मजबूत करें, ताकि इस तरह की धोखाधड़ी से ग्राहकों को नुकसान न हो।

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