इंश्योरेंस कंपनी से लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी खरीदते वक्त नॉमिनी का नाम देना जरूरी होता है। आम तौर पर व्यक्ति अपनी पत्नी को नॉमिनी बनाता है। इससे पॉलिसीहोल्डर की मौत हो जाने पर इंश्योरेंस का पैसा पत्नी को मिल जाता है। यह उल्टा भी हो सकता है। अगर पत्नी लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी खरीदती है तो वह पति को नॉमिनी बना सकती है। यह व्यवस्था सालों से चली आ रही है। ज्यादातर मामलों में पॉलिसीहोल्डर की मौत होने पर इंश्योरेंस कंपनी पैसे का पेमेंट नॉमिनी यानी पति या पत्नी कर करती है। समस्या तब पैदा होती है जब किसी हादसे में पॉलिसीहोल्डर और नॉमिनी की भी मौत हो जाती है।क्या है IRDAI का नियम?अहमदाबाद में 12 जून को लंदन जा रहा विमान हादसे का शिकार हो गया। विमान में सवार कई परिवार एक साथ मौत के मुंह में समा गए। इनमें कुछ मामले ऐसे भी थे, जिनमें पॉलिसीहोल्डर और नॉमिनी की मौत हो गई। सवाल है कि ऐसे मामलों में बीमा का पैसा किसे मिलेगा? इंश्योरेंस रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी (IRDAI) के नियम के मुताबिक, अगर किसी हादसे में पॉलिसीहोल्डर और नॉमिनी की मौत हो जाती है तो इंश्योरेंस कंपनी यह मान सकती है कि नॉमिनी की मौत पॉलिसीहोल्डर की मौत के बाद हुई।संबंधित खबरेंकानूनी उत्तराधिकारी कर सकता है दावाएक्सपर्ट्स का कहना है कि ऐसे मामलों में नॉमिनी के कानूनी उत्तराधिकारी को क्लेम का हकदार माना जाता है। हालांकि, इंश्योरेंस कंपनी ऐसे मामलों में पॉलिसी के नियम और शर्तों के आधार पर फैसला लेती है। लेकिन, आम तौर पर नॉमिनी के कानूनी उत्तराधिकारी को इंश्योरेंस के पैसे का हकदार माना जाता है। कानूनी वारिस इंश्योरेंस कंपनी के पास बीमा के पैसे के लिए क्लेम कर सकता है। इंश्योरेंस कंपनी डॉक्युमेंट्स की जांच और दावा करने वाले और नॉमिनी के बीच के संबंध के सबूतों की पुष्टि करने के बाद पैसे का पेमेंट कर देती है।क्लास वन और क्लास टू लीगल वारिस कर सकता है दावाहिंदू उत्तराधिकार कानून में कानूनी वारिस को दो वर्गों में बांटा गया है। पहले वर्ग में क्लास वन लीगल वारिस आते हैं। इनमें पत्नी, बेटा या बेटी और मां शामिल हैं। अगर पॉलिसीहोल्डर के बेटे या बेटी की मौत हो जाती है तो पॉलिसीहोल्डर के नाती और पोता बीमा के पैसे के लिए क्लेम कर सकते हैं। अगर, क्लास वन लीगल वारिस में कौई नहीं है तो फिर क्लास 2 लीगल वारिस पर विचार किया जाता है। इनमें पिता, भाई, बहन, भतीजा, भतीजी शामिल हैं।
