इनकम टैक्स रिटर्न (आईटीआर) फाइल करने का सीजन शुरू हो चुका है। खासकर एंप्लॉयर्स के फॉर्म 16 जारी कर देने के बाद सैलरीड टैक्सपेयर्स ने भी रिटर्न भरना शुरू कर दिया है। हालांकि, इस बार इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने की डेडलाइन 15 सितंबर है। लेकिन, एक्सपर्ट्स का कहना है कि टैक्सपेयर्स को रिटर्न फाइल करने के लिए अंतिम तारीख का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। रिटर्न फाइल करते वक्त आपको किसी तरह की इनकम को छुपाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।इनकम हाई वैल्यू ट्रांजेक्शन के हिसाब से होनी चाहिएएक्सपर्ट्स का कहना है कि इनकम टैक्स डिपार्टमेंट टैक्सपेयर्स की हर फाइनेंशियल ट्रांजेक्शन की जानकारी रखता है। खासकर उसकी नजरें हाई वैल्यू ट्रांजेक्शन पर होती है। इसका मतलब है कि अगर कोई व्यक्ति हाई वैल्यू ट्रांजेक्शन करता है, लेकिन इनकम टैक्स रिटर्न में अपनी इनकम काफी कम दिखाता है तो उसका इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की निगाह में आना पक्का है। हाई वैल्यू ट्रांजेक्शन ट्रैक करने का मकसद है टैक्स चोरी के मामलों पर लगाम लगाना।संबंधित खबरेंबैंक में डिपॉजिट के डेटा पर होती है खास नजरइनकम टैक्स डिपार्टमेंट बैंक और फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशंस से मिले डेटा से टैक्सपेयर्स के हाई वैल्यू ट्रांजैक्शंस पर नजर रखता है। टैक्स कनेक्ट एडवाजयरी सर्विसेज एलएलपी के पार्टनर विवेक जलान ने कहा कि नियमों के तहत बैंकों और दूसरी वित्तीय संस्थाओं के लिए कई तरह के ट्रांजेक्शन की जानकारी इनकम टैक्स डिपार्टमेंट को देनी जरूरी है। उदाहरण के लिए अगर कोई व्यक्ति एक वित्त वर्ष में सेविंग्स अकाउंट्स में 10 लाख रुपये से ज्यादा डिपॉजिट करता है तो बैंक को इसकी जानकारी इनकम टैक्स डिपार्टमेंट को देनी पड़ती है।ज्यादा पैसे निकालने पर भी चौकन्ना हो जाता है इनकम टैक्स डिपार्टमेंटअगर कोई व्यक्ति करेंट अकाउंट से 50 लाख रुपये से ज्यादा निकालता है या डिपॉजिट करता है तो इसकी जानकारी बैंक को इनकम टैक्स डिपार्टमेंट को देनी पड़ेगी। अगर कोई व्यक्ति एक वित्त वर्ष में 10 लाख रुपये का क्रेडिट कार्ड बिल (कैश छोड़कर) चुकाता है तो इसकी जानकारी क्रेडिट कार्ड इश्यू करने वाला बैंक इनकम टैक्स डिपार्टमें को देगा। अगर गुड्स या सर्विसेज की बिक्री से 2 लाख रुपये आपके अकाउंट में आते हैं तो इसकी जानकारी डिपार्टमेंट को मिल जाएगी।ये हैं इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के सबसे बड़े हथियारआपके लिए यह समझ लेना जरूरी है कि इनकम टैक्स डिपार्टमेंट टैक्सपेयर्स के अलग-अलग ट्रांजेक्शन को ट्रैक नहीं करता है। इसकी जगह डिपार्टटमेंट एनुअल इंफॉर्मेशन स्टेटमेंट (AIS) और फॉर्म 26 एएस का इस्तेमाल करता है। इन दोनों डॉक्युमेंट्स में टैक्सपेयर्स के छोटे-बड़े हर ट्रांजेक्शन शामिल होते हैं। जैसे अगर आपने शेयर खरीदे हैं या बेचे हैं तो इसकी जानकारी इसमें होगी। अगर आपने स्टॉक मार्केट्स में ट्रेडिंग की है तो इसकी जानकारी भी इसमें होगी।
